पड़ोसी जिला बलिया के भरौली, या यह कहना बेहतर होगा कि पुल के उस पार वाली बस्ती में 4 अगस्त 1978 को एक दलित परिवार में पैदा हुए रवींद्र राजू का बचपन गरीबी में बीता। भोजपुरी गायक गोपाल राय के लंगोटिया यार रहे रवींद्र राजू कभी अपने गुरु और भोजपुरी के मशहूर गीतकार परशुराम केसरी के यहां कोरस गाया करते थे। तब गोपाल भी उनके साथ हुआ करते थे। दोनों की शुरूआत यहीं से हुई। बाद में संघर्ष करते हुए दोनों आगे बढ़े। भरौली के ये दोनों गायक एक समय भोजपुरी गायकी का भविष्य बनकर उभरे। गोपाल और रवींद्र की जोड़ी काफी हिट हुई। जब दोनों स्टेज प्रोग्राम करते थे तब नजारा कुछ और हुआ करता था।
‘हमरा के पेठा द नइहरवा ए बलम जी’ और ‘खेत-बारी बंटि जाई पाई-पाई वीरना, कइसे माई के सनेहिया बांटल जाई बीरना’ जैसे गीतों से कुछ ही समय में रवींद्र ने वह मुकाम हासिल कर लिया जो किसी का सपना होता है। वर्ष 2002 में आया रवींद्र के गीतों का एलबम ‘ए बलम जी’ सुपर-डुपर हिट हुआ। भोजपुरी संगीत की दुनिया में रवींद्र एक सितारे की तरह उभरे। उनके छह-सात एलबम आए और सारे के सारे हिट। हां, एक खास बात रही कि रवींद्र ने भी कभी बाजार के साथ समझौता नहीं किया। बाजार की बांसुरी पर नहीं झूमे, बल्कि अपनी धुन पर बाजार को नचाया। भोजपुरी को एक से एक हिट गीत देने वाले रवींद्र 40 साल से भी कम उम्र में 30 दिसंबर 2017 को इस दुनिया को विदा कह गए।