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बरसी विशेष : रवींद्र राजू, वह भोजपुरी गायक जिसकी खनकती आवाज तिरछे उतरती थी दिल में

Posted By : bhojbhoomi ,          599 0 Comments
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फोटो-साभार गूगल

भोज भूमि : -‘हमरा के पेठा द नइहरवा ए बलम जी’ और खेत-बारी बंटि जाई पाई-पाई बीरना’ जैसे गीतों के गायक रवींद्र की आज बरसी है
-3 साल पहले 2017 में आज ही के दिन बेसमय अस्त हो गया था भोजपुरी गायकी का यह चमचमाता सितारा, खटकती है कमी
-गरीब दलित परिवार में पैदा हुए रवींद्र ने अपनी गायकी से भोजपुरी संगीत की दुनिया में हासिल किया था बड़ा मुकाम

बक्सर। हमारे प्रतिनिधि
रवींद्र राजू का नाम तो याद होगा। भोजपुरी गायकी का बेसमय अस्त हुआ वह सितारा जो अपनी खनकती आवाज से किसी के दिल में तिरछे उतर जाया करता था। आज रवींद्र की बरसी है। तीन साल पहले आज ही के दिन बेसमय मौत ने उन्हें हमसे छीन लिया था।

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        पड़ोसी जिला बलिया के भरौली, या यह कहना बेहतर होगा कि पुल के उस पार वाली बस्ती में 4 अगस्त 1978 को एक दलित परिवार में पैदा हुए रवींद्र राजू का बचपन गरीबी में बीता। भोजपुरी गायक गोपाल राय के लंगोटिया यार रहे रवींद्र राजू कभी अपने गुरु और भोजपुरी के मशहूर गीतकार परशुराम केसरी के यहां कोरस गाया करते थे। तब गोपाल भी उनके साथ हुआ करते थे। दोनों की शुरूआत यहीं से हुई। बाद में संघर्ष करते हुए दोनों आगे बढ़े। भरौली के ये दोनों गायक एक समय भोजपुरी गायकी का भविष्य बनकर उभरे। गोपाल और रवींद्र की जोड़ी काफी हिट हुई। जब दोनों स्टेज प्रोग्राम करते थे तब नजारा कुछ और हुआ करता था।
        ‘हमरा के पेठा द नइहरवा ए बलम जी’ और ‘खेत-बारी बंटि जाई पाई-पाई वीरना, कइसे माई के सनेहिया बांटल जाई बीरना’ जैसे गीतों से कुछ ही समय में रवींद्र ने वह मुकाम हासिल कर लिया जो किसी का सपना होता है। वर्ष 2002 में आया रवींद्र के गीतों का एलबम ‘ए बलम जी’ सुपर-डुपर हिट हुआ। भोजपुरी संगीत की दुनिया में रवींद्र एक सितारे की तरह उभरे। उनके छह-सात एलबम आए और सारे के सारे हिट। हां, एक खास बात रही कि रवींद्र ने भी कभी बाजार के साथ समझौता नहीं किया। बाजार की बांसुरी पर नहीं झूमे, बल्कि अपनी धुन पर बाजार को नचाया। भोजपुरी को एक से एक हिट गीत देने वाले रवींद्र 40 साल से भी कम उम्र में 30 दिसंबर 2017 को इस दुनिया को विदा कह गए।

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फोटो-साभार गूगल

        उनके लंगोटिया यार और भोजपुरी के नामचीन गायक गोपाल राय इस मौके पर उन्हें याद करते हुए कहते हैं कि रवींद्र के साथ ढेर सारी यादें जुड़ी हैं। कितना बताऊं। बचपन से गुरुजी के यहां साथ टेरी भरा करते थे। साथ-साथ बड़े हुए और गायकी की दुनिया में नाम भी बटोरा। अभी तो सफर शुरू ही हुआ था कि वह मुझे अकेला छोड़ असमय निकल गया। 40 साल की उम्र ही क्या होती है? गोपाल ने भरे गले से कहा कि उसका न होना अखरता है, लेकिन विधाता के आगे किसकी चली है। वैसे भी रवींद्र जितने खूबसूरत गायक थे, उससे तनिक कम खूबसूरत उनका स्वभाव नहीं था। कहा जा सकता है कि वह संस्कारों से लैस भोजपुरी के गायक थे, जिनका न होना हम सबों को अखरता है। ‘भोज भूमि’ इस दिवंगत और बेमिसाल लोकगायक के प्रति अपनी श्रद्धांजलि निवेदित करता है।