जयप्रकाश का बिगुल बजा तो जाग उठी तरुणाई है-इसी संकल्प के साथ 1977 में सत्ता परिवर्तन हुआ। आज संपूर्ण क्रांति के क़रीब 45 साल बाद भी हम उस क्रांति के निर्धारित लक्ष्यों के तरफ एक कदम भी नही बढ़ सके हैं। बल्कि मौजूदा दौर में सत्य तो यह है कि सम्पूर्ण क्रांति के योद्धाओं के हाथ जब भी सत्ता आई तो ये कांग्रेस के भ्रष्टाचारियों से भी ज्यादा भ्रष्ट हुए। इन्होंने निर्लज्जता और बेशर्मी की सारी हदें पार भी कर दी। तो ऐसे में सवाल यही है कि क्या हम जेपी को श्रद्धांजलि देने के लायक भी हैं? आज हम जेपी के सत्तादारी अनुयायियों की फेहरिस्त को परखें तो लालू यादव, रामविलास पासवान, राजनाथ सिंह , रविशंकर प्रसाद, अश्विनी चौबे, नीतीश कुमार से लेकर नरेन्द्र मोदी ही नहीं बल्कि मौजूदा केन्द्र में दर्जनों मंत्री और बिहार-यूपी और गुजरात में मंत्रियों की लंबी फेरहिस्त मिल जायेगी जो खुद को जेपी का अनुनायी बताते हैं। ये उनके संघर्ष में साथ खडे होने की बात भी कहेेंगे। आज हम जेपी की जयंती तो मना रहे हैं। मगर ये याद रखने की बात है कि जब मुनादी हो तब धर्मवीर भारती की कविता 'मुनादी' के शब्द याद रहे-
बेताब मत हो / तुम्हें जलसा-जुलूस, हल्ला-गुल्ला, भीड़-भड़क्के का शौक है / बादश्शा को हमदर्दी है अपनी रियाया से / तुम्हारे इस शौक को पूरा करने के लिए / बाश्शा के खास हुक्म से / उसका अपना दरबार जुलूस की शक्ल में निकलेगा / दर्शन करो ! /वही रेलगाड़ियाँ तुम्हें मुफ्त लाद कर लाएँगी / बैलगाड़ी वालों को दोहरी बख्शीश मिलेगी / ट्रकों को झण्डियों से सजाया जाएगा /नुक्कड़ नुक्कड़ पर प्याऊ बैठाया जाएगा / और जो पानी माँगेगा उसे इत्र-बसा शर्बत पेश किया जाएगा / लाखों की तादाद में शामिल हो उस जुलूस में / और सड़क पर पैर घिसते हुए चलो / ताकि वह खून जो इस बुड्ढे की वजह से / बहा, वह पुँछ जाए ! / बाश्शा सलामत को खून-खराबा पसन्द नहीं !.